Physics

ऊष्मागतिकी के नियम ( Thermodynamics Rules in Hindi )

Thermodynamics Rules in Hindi

इस article में हम उष्मागतिकी क्या है ?, उष्मागतिकी के नियम (Thermodynamics Rules in Hindi ) के बारे में पढ़ेंगे।

ऊष्मागतिकी भौतिकी की एक महत्पूर्ण शाखा है। हम ऊष्मागतिकी में ऊष्मा और ताप का तथा उनका कार्य और ऊर्जा से संबध का अध्ययन करते है। अगर हम दूसरे शब्दो मे कहे तो ऊष्मागतिकी में हम ऊष्मा ,कार्य और ताप के मध्य संबध को स्थापित करते है।जिस प्रकार ऊर्जा का एक रूप से दूसरे रूप में रूपांतरण संभव है। ऊष्मागतिकी शब्द दो शब्दो से मिलकर बना है ऊष्मा और गतिकी जिनका मतलब है ऊष्मा की गति या ऊष्मा का प्रवाह।

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ऊष्मागतिकी की परिभाषा

इसको अगर हम शाब्दिक भाषा में लिखे तो ऊष्मा के प्रवाह को ही ऊष्मा गतिकी कहते है।उष्मगतिकी को विज्ञान में यथार्थ विज्ञान का दर्जा दिया गया है।

उष्मागतिकी के नियम (Thermodynamics Rules in Hindi )

ऊष्मा गतिकी के 4 नियम दिए गए है यहां हम उनका अध्ययन करेंगे। ये नियम बड़े ही उपयोगी सिद्ध हुए।

ऊष्मा गतिकी का शून्य का नियम

इस नियम के अनुसार यदि दो वस्तुएं एक दूसरे के साथ तापीय साम्य में है तो उनमें ताप की मात्रा समान होगी।

उदाहरण के लिए माना यदि दो वस्तुएं A और B किसी तीसरे वस्तु C के साथ अलग अलग जुड़ी हुई है और यदि वस्तु A ,C के साथ उष्मीय साम्य में है और B भी C के साथ भी उष्मीय साम्य तो अगर हम A और B को एक दूसरे के संपर्क में लाए तो वे भी एक दूसरे के साथ साम्य में है।

इसके बाद 19 शताब्दी में ऊष्मा गतिकी के प्रथम तथा दूतीय नियम दिए गए। 20 वी शताब्दी में तृतीय नियम दिए गए।

ऊष्मा गतिकी का प्रथम नियम

ऊष्मा गतिकी के प्रथम नियम को ऊर्जा सरक्षण का नियम भी कहते है ।इसके अनुसार ऊर्जा का ना तो उत्त्तपन किया जा सकता है न ही नष्ट किया जा सकता हैं बल्कि ऊर्जा का एक रूप से दूसरे रूप में रूपांतरण किया जा सकता है।

इसे हम इस प्रकार भी कह सकते है की किसी भी तंत्र की कुल ऊर्जा स्थिर होती है।ऊर्जा के एक रूप को दूसरे रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।

ऊष्मा गतिकी के प्रथम नियम से कुछ निस्कर्ष सामने आए।

ब्रह्माण्ड की कुल ऊर्जा निश्चित होती है लेकिन ऊर्जा का रूपांतरण संभव है। ऐसी गति मशीन बनाना संभव नहीं है जिस पर बिना ऊर्जा के कार्य प्राप्त हो सके।

ऊष्मा गतिकी का दूसरा नियम

यह नियम केल्विन ने वर्ष 1850 में दिया सरल भाषा में इस नियम के अनुसार ऊष्मा कभी भी निम्न ताप की वस्तु से उच्च ताप की वस्तु की ओर प्रवाहित नहीं होती।

इस नियम को इस प्रकार भी वक्त्य किया जा सकता है कि जब तक किसी निकाय को बाहरी निकाय से ऊर्जा प्राप्त ना हो तब तक निम्न ताप से ऊर्जा उच्च ताप की वस्तु को नहीं दी जा है।

ऊष्मा गतिकी का तृतीय नियम

प्लांक ने वर्ष 1913 में ये नियम प्रतिपादित किया इसके अनुसार शुद्ध एवम पूरी तरह से क्रिष्टिल ठोस की एंट्रोपी का मान 0 परमताप पर 0 होता है
इसे इस प्रकार लिखा जाता है
S limit T_0 = 0
T = 0 तब S = 0

इस प्रकार तृतीय नियम को लगाने पर
St जो की ठोस की परम निरपेछ एंट्रोपी होती हैं यह हमेशा धनात्मक होती है।

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मेरा नाम विशाल राठौर है। मै इस Website का लेखक हूँ। इस Website पे मै Agriculture Study के लेख प्रकाशित करता हूँ।

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